भारत में शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21-क के तहत मान्यता प्राप्त है। निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 ने 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान किया। इस अधिनियम का उद्देश्य न केवल शिक्षा की पहुंच बढ़ाना है, बल्कि बच्चों की गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना भी है। हाल ही में इस अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिनमें कक्षा 5 और 8 में छात्रों के फेल होने की अनुमति शामिल है।
आरटीई अधिनियम का इतिहास
- प्रस्तावना: आरटीई अधिनियम को 2009 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना था।
- संविधान में संशोधन: 86वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21-क में यह स्पष्ट किया गया कि 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है।
- प्रमुख प्रावधान: इस अधिनियम के तहत, सभी बच्चों को उनके निकटतम स्कूल में प्रवेश, उपस्थिति और शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।
आरटीई अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
प्रावधान | विवरण |
नि:शुल्क शिक्षा | 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। |
अनिवार्य शिक्षा | सभी बच्चों को स्कूल में उपस्थित रहना और शिक्षा पूरी करना अनिवार्य होगा। |
निजी स्कूलों में आरक्षण | निजी स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित करनी होंगी। |
डिटेंशन नीति | पहले, कक्षा 5 और 8 तक किसी भी बच्चे को पिछली कक्षा में रोकने की अनुमति नहीं थी। |
हालिया बदलाव: कक्षा 5 और 8 में फेल होने की अनुमति
संशोधन का उद्देश्य
हाल ही में, आरटीई अधिनियम में संशोधन किया गया है जो कक्षा 5 और कक्षा 8 में छात्रों के फेल होने की अनुमति देता है। यह बदलाव कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- शिक्षा की गुणवत्ता: यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्र वास्तव में अपनी कक्षाओं में सक्षम हैं और आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।
- अतिरिक्त शिक्षण: यदि कोई छात्र परीक्षा में असफल होता है, तो उसे अतिरिक्त शिक्षण दिया जाएगा और पुनः परीक्षा का अवसर मिलेगा।
- राज्यों को अधिकार: यदि छात्र पुनः परीक्षा में भी असफल होता है, तो संबंधित राज्य सरकार या केंद्र सरकार स्कूल को छात्र को पिछली कक्षा में रोकने की अनुमति दे सकती है।
संशोधन विधेयक का विवरण
- प्रस्तावना: यह विधेयक पहले लोकसभा द्वारा पारित किया गया था और हाल ही में राज्यसभा द्वारा भी पारित किया गया।
- परीक्षा प्रणाली: अब कक्षा 5 और कक्षा 8 में नियमित परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी।
- अतिरिक्त शिक्षण: असफल छात्रों को अतिरिक्त शिक्षण देने का प्रावधान किया गया है।
आरटीई अधिनियम के लाभ
- समानता: यह अधिनियम सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान करता है, भले ही वे किसी भी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि से हों।
- गुणवत्ता वाली शिक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि सभी बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करें।
- सामाजिक समावेशिता: कमजोर वर्गों के बच्चों को विशेष ध्यान दिया जाता है।
चुनौतियाँ
हालांकि आरटीई अधिनियम ने कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
- शिक्षकों की कमी: कई स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: कई स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
- समुदाय की जागरूकता: ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों की जागरूकता की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।
निष्कर्ष
निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। हालिया संशोधनों से न केवल छात्रों की गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि यह उन्हें वास्तविकता से जोड़ने का भी काम करेगा। हालांकि, इसके सफल कार्यान्वयन के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों की सहभागिता आवश्यक है।
इस प्रकार, आरटीई अधिनियम न केवल बच्चों के लिए एक अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह समाज के विकास और प्रगति के लिए भी एक महत्वपूर्ण आधार तैयार करता है।